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दलित बहादुर लड़ाकू - फूलन देवी की कहानी

              दलित बहादुर  लड़ाकू महिला  - फूलन देवी  की कहानी     

                   जातिवादी  राजपूतो के  आतंक  की शिकार 





फूलन देवी 1980 के दशक के शुरुआत में चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं। फूलन देवी के डकैत बनने की कहानी किसी के भी रोंगटे खड़ी कर सकती है। फूलन के क्रूर स्वभाव के पीछे की क्या है कहानी, यह हम आपको आगे बताएंगे।

दरअसल, हालात ने बचपन से ही फूलन देवी को इतना कठोर बना दिया कि जब उन्होंने बहमई में एक लाइन में खड़ा करके 22 ठाकुरों की हत्या की तो उन्हें ज़रा भी मलाल नहीं हुआ।

फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक गाँव पूरवा में 1963 में हुआ था। इसी गांव से उसका कहानी भी शुरू होती है। जहां वह अपने मां-बाप और बहनों के साथ रहती थी। कानपुर के पास स्थित इस गांव में फूलन के परिवार को मल्लाह होने के चलते ऊंची जातियों के लोग हेय दृष्टि से देखते थे।

इनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता था। फूलन के पिता की सारी जमीन उसके भाई से झगड़े में छिन गई थी। फूलन के पिता जो कुछ भी कमाते वह जमीन के झगड़े के चलते वकीलों की फीस में चला जाता।फूलन इसी तरह के दमघोंटू माहौल में पलते-पलते अंदर से बदले की आग से जलने लगी। उसकी इस जलन को सुलगाने में उसकी मां ने भी आग में घी का काम किया।

जब फूलन 11 साल की हुई, तो उसके चचेरे भाई मायादिन ने उसको गांव से बाहर निकालने के लिए उसकी शादी पुट्टी लाल नाम के बूढ़े आदमी से करवा दी गई।

फूलन के पति ने शादी के तुरंत बाद ही उसका रेप किया और उसे प्रताडित करने लगा। परेशान होकर फूलन पति का घर छोड़कर वापस मां-बाप के पास आकर रहने लगी।

यहां उसने अपने परिवार के साथ मजदूरी करना शुरू कर दिया। यहीं से लोगों को फूलन के विद्रोही स्वभाव के नजारे देखने को मिले। एक बार तो जब एक आदमी ने फूलन को मकान बनाने में की गई मजदूरी का मेहनताना देने से मना कर दिया, तो उसने रात को उस आदमी के मकान को ही कचरे के ढेर में बदल दिया। 


उस समय फूलन 15 साल की थी जब कुछ दबंगों ने घर में ही उसके मां-बाप के सामने उसके साथ गैंगरेप किया। बावजूद फूलन के तेवर कमजोर नहीं पड़े।

उसके बाद गांव के दबंगों ने एक दस्यु गैंग को कहकर फूलन का अपहरण करवा दिया। बस यहीं से शुरू हुआ फूलन के डकैत बनने की कहानी और उसने 14 फ़रवरी 1981 को बहमई में 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके मारी गोली मार दी।

इस घटना ने फूलन देवी का नाम बच्चे की ज़ुबान पर ला दिया था। फूलन देवी का कहना था उन्होंने ये हत्याएं बदला लेने के लिए की थीं। उनका कहना था कि ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था जिसका बदला लेने के लिए ही उन्होंने ये हत्याएं कीं।

कहा जाता था कि फूलन देवी का निशाना बड़ा अचूक था और उससे भी ज़्यादा कठोर था उनका दिल। उनके जीवन पर कई फ़िल्में भी बनीं लेकिन पुलिस का डर उन्हें हमेशा बना रहता था।

साथ ही ख़ासकर ठाकुरों से उनकी दुश्मनी थी इसलिए उन्हें अपनी जान का ख़तरा हमेशा महसूस होता था। चंबल के बीहड़ों में पुलिस और ठाकुरों से बचते-बचते शायद वह थक गईं थीं इसलिए उन्होंने हथियार डालने का मन बना लिया।

लेकिन आत्मसमर्पण का भी रास्ता इतना आसान नहीं था। फूलन देवी को शक था कि यूपी पुलिस उन्हें समर्पण के बाद किसी ना किसी तरीक़े से मार देगी इसलिए उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सामने हथियार डालने के लिए सौदेबाज़ी की।

मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाले और उस समय उनकी एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ जमा थी।

1994 में जेल से रिहा होने के बाद वे 1996 में सांसद चुनी गईं। समाजवादी पार्टी ने जब उन्हें लोक सभा का चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया तो काफ़ी हो हल्ला हुआ कि एक डाकू को संसद में पहुँचाने का रास्ता दिखाया जा रहा है।

वह दो बार लोकसभा के लिए चुनी गईं। लेकिन 2001 में केवल 38 साल की उम्र में दिल्ली में उनके घर के सामने फूलन देवी की हत्या कर दी गई थी।

खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाले शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्या के बाद दावा किया था 1981 में मारे गए सवर्णों की हत्या का बदला लिया है। यही नहीं, बाद में जेल से फरार होकर उसने एक विडियो जारी किया था। इस विडियो में उसने अफगानिस्तान से पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां स्वदेश लाने की कोशिश करने का दावा किया था।
फूलन की मौत को एक राजनीतिक साजिश भी माना जाता है। उनके पति उम्मेद सिंह पर भी आरोप लगे थे, लेकिन वे साबित नहीं हो सके थे।

1994 में उनके जीवन पर शेखर कपूर ने 'बैंडिट क्वीन' नाम से फ़िल्म बनाई जिसे पूरे यूरोप में ख़ासी लोकप्रियता मिली। फिल्म अपने कुछ दृश्यों और फूलन देवी की भाषा को लेकर काफ़ी विवादों में भी रही।

फ़िल्म में फूलन देवी को एक ऐसी बहादुर महिला के रूप में पेश किया गया जिसने समाज की ग़लत प्रथाओं के ख़िलाफ़ संघर्ष किया।दिल्ली की एक अदालत ने डाकू से नेता बनीं फूलन देवी की सनसनीखेज हत्या के 13 साल पुराने मामले में मुख्य आरोपी शेर सिंह राणा को दोषी करार दिया। राजधानी में अशोक रोड स्थित सरकारी आवास के सामने हुयी इस हत्या के वक्त फूलन देवी लोक सभा की सदस्य थीं।


न्यायाधीश ने जैसे ही फैसला सुनाया 38 साल के राणा ने कहा, ‘आपने सिर्फ मुझे ही दोषी क्यों ठहराया है? बाकी लोग भी शामिल थे।’ न्यायाधीश ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दाखिल कर आदेश को चुनौती दे सकते हैं।

पुलिस का कहना था कि मुख्य आरोपी राणा फूलन की हत्या का मास्टरमाइंड बनकर ठाकुरों का नेता बनना चाहता था। पुलिस ने समाजवादी पार्टी की सांसद रही फूलन की हत्या के पीछे किसी और मंशा से इनकार किया था। आरोप-पत्र के मुताबिक, राणा ने अपने दोस्त और रूड़की में बंदूक की दुकान के मालिक राठी से हथियार खरीदे।

वह 25 जुलाई 2001 को विक्की, शेखर, राजबीर, उमा कश्यप, उसके पति विजय कुमार कश्यप के साथ दो मारूति कारों में दिल्ली आया। राणा फूलन के संसद से घर लौटने का इंतजार कर रहा था। फूलन के गाड़ी से उतरते ही राणा ने उनके सिर में गोली मारी जबकि विक्की ने उनके पेट में कई गोलियां उतार दी।

आरोप-पत्र के मुताबिक, बाद में राणा ने जमीन पर गिर चुकीं फूलन पर अंधाधुंध गोलियों की बरसात कर दी। विक्की ने फूलन के अंगरक्षक पर गोलियां चलाई। इसके जवाब में फूलन के अंगरक्षक ने भी उस पर गोलियां चलाई। मौके से फरार होते वक्त आरोपियों ने अपने देसी पिस्तौल वहां गिरा दिए।

राणा ने भागते वक्त कार से भी एक गोली चलाई। पुलिस ने एक वेबली स्कॉट रिवॉल्वर, मोबाइल फोन, सिम कार्ड और घटना के वक्त आरोपियों द्वारा पहने गए कपड़े भी बरामद किए थे। फूलन के शरीर से निकाली गई गोलियों की फॉरेंसिक जांच में इस बात की पुष्टि हुई थी कि उन पर आरोपियों से बरामद किए गए हथियारों से ही गोलियां चलाई गई थी। आरोप-पत्र के मुताबिक, राणा दो-तीन साल से फूलन देवी की हत्या की फिराक में था। इसके लिए उसने बैंक लूटकर पैसे भी जुटाए थे और डकैती भी की थी।

कहा है फूलन देवी का हत्यारा ? क्या वो आतंकवादी नहीं ?. उसको फांसी क्यों नहीं मिली. बहुत सरे सवाल मेरे दिमाग में है। और कबतक दलित हिन्दू आतंक का शिकार बनते रहेंगे.? जरा सोचिये। 


            





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