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बुद्धम सरणं गच्छामि


भगवान बुद्ध -  बुद्धम सरणं गच्छामि।




भारत की पवित्र भूमि पर ऐसे कई महापुरषों ने जनम लिया है जिन्होंने अपने कर्मो और सिद्धांतों के बल पर मानव जीवन के भीतर छिपे गूढ  रहस्यों को उजागर किया।  इन्ही में से एक है महात्मा बुद्ध , जिन्होंने सामान्य मनुस्य के रूप में जनम लेकर अध्यात्म की उस उचाई को छुआ ,जहां तक पहुंचना किसी आम व्यक्ति के लिए मुमकिन नहीं है।  ऐसे महान  पुरुष  की दिखलाये गए मार्ग को भारत समेत सभी बड़े देशो में बौद्ध धर्म एक प्रमुख धर्म के रूप में स्वीकृत कर लिया गया।

महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था  इनका जनम शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिल वास्तु ,लुंबनी  नामक स्थान पर राजा शुद्दोधन के घर रानी मायादेवी के गर्भ से  ५६३  ईसापूर्व में हुआ था। किन्तु जन्म  के सात दिन बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया था।  उनका ललन पालन शुद्दोधन की दूसरी पत्नी महा प्रजावति गौतमी  ने किया था इसी कारण  उन्हें गौतम भी कहा जाता है बुद्धतत्व की प्राप्ति के बाद उनके नाम के आगे उपसर्ग बुद्ध जोड़ दिया गया।  और महातम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

सिद्धार्थ के जनम के समय ही एक महान  साधु  नेब  ने यह घोषणा कर दी थी के यह बच्चा या तो महान राजा बनेगा या फिर एक बेहद पवित्र मनुस्य के रूप  में अपनी पहचान स्थापित करेगा।  इस भविष्वाणी को सुनकर राजा शुद्दोधन ने अपनी सामर्थ्य की हद तक सिद्धार्थ को दुखो से दूर रखने के कोशिश की लेकिन छोटी से आयु में ही सिद्धार्थ जीवन और मृत्यु की सच्चाई को समझ गए। उन्होंने यह जन लिया जिस प्रकार जनम लेना एक सच्चाई है उसी तरह मृत्यु भी एक सच है। संसार की सच्चाई जानने के बाद महात्मा बुद्ध सांसारिक खुशिया  और विलास भरे जीवन से विमुख हो गए। . राजपाठ  के साथ पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को १६ वर्ष की आयु में छोड़ कर उन्होंने एक साधु का जीवन अपना लिया।


दो अन्य ब्राह्मणो के साथ सिद्धार्थ ने अपने भीतर उपजे प्रश्नों के हल ढूढ़ने शुरू कर दिए। लेकिन समुचित ध्यान लगाने और कड़े परिश्रम के बाद भी उन्हें अपने प्रश्नों का हल नहीं मिला। हर बार असफलता हाथ लगने के बाद उन्होंने कुछ साथियो के साथ कठोर टप करने का निर्णय लिए।  ६ वर्षो के कठोर तप  के बाद भी वह अपने उदेश्यो को पूरा नहीं कर पाए।  इसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या छोड़कर आर्य अष्टांग मार्ग ,जिसे मध्यम मार्ग भी कहा जाता है। ढूढ़ निकला। वह एक पीपल के पेड़ के नीचे  बेठ गए और निष्चय किया की अपने प्रश्नों के उत्तर जाने बिना वह यह से नहीं उठेगे। लगभग ४९ दिन बाद ध्यान में रहने के बाद उन्हें सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ती हुई और मात्र ३५ वर्ष की आयु में वह सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध  बन गए।  ज्ञान की प्राप्ती के बाद दो व्यापारी तपुसा और भलिका से मिले जो उनके पहले अनुयायी बने ,जिस पेड़ के नीचे तपस्या की वह वटवृक्ष कहलाया जो की बोधगया में है।  वाराणसी के समीप सारनाथ में उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया।  पाली मुख्य भाषा थी।  


बौद्ध धर्म के साहित्य अनुसार ८० वर्ष के आयु में महात्मा बुद्ध ने यह घोषित कर दिया था की वह बहुत ही जल्द महापरिनिर्वाण की अवस्था में पहुंच जायगे। इस कथन के बाद महात्मा बुद्ध ने एक लुहार के हाथ से आखरी निवाला खाया ,इसके बाद की वह बहुत जयादा बीमार हो गए। लुहार को लगा की उसके खाने के कारण ही महात्मा बुद्ध की  हालत हो गयी इसी लिए महात्मा बुद्ध ने अपने एक अनुयायी को कुंडा नामक लुहार को समझाने भेजा तथा वैधो ने बी प्रमाणित कर दिया था की उनका निधन वृद्धा अवस्था के कारण  हुआ न की जहरीला भोजन खाने के कारण।


ज्ञान प्राप्ती : 

वैसाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के निचे ध्यान मग्न थे समीपवर्ती गांव की एक स्त्री सुजाता को पुत्र हुआ उसने बेटे के लिए एक वटवृक्ष की मनौती मांगी थी वह मनौती पूरी करने की लिए सोने के थाल  में गाय के दूध की खीर भरकर पहुंची। सिद्धार्थ वहां  बैठा ध्यान कर रहा था उसे स्त्री को लगा की वृक्ष देवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर धारण करके बैठे है सुजाता ने बड़े आदर  से सिद्धार्थ को खीर भेट की और कहा " जैसे मेरी मनोकामना पूर्ण हुई उसी तरह आपकी भी हो।  " उसी रात को ध्यान लगाने  पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुयी। उसे सच्चा बौद्ध हुआ। तभी से सिद्धार्थ बुद्ध  कहलाए। जिस पीपल के निचे सिद्धार्थ को बौध मिला वह बोधि वृक्ष कहलाया और गया का समीपवर्ती वह स्थान बोधगया को गया।


उपदेश :


भगवान बुद्ध ने लोगो को मध्यम  मार्ग का उपदेश दिया। उन्होंने दुःख और उसके कारण और निवारण के लिए मध्यम मार्ग को सुझाया। उन्होंने अहिंसा पर जोर दिया और पशुबलि और यज्ञ की घोर निंदा की। बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है।

 मुख्य  सिद्धांत :
  • संसार में कोई ईस्वर नहीं है 
  • शरीर के अंदर कोई आत्मा नहीं है 
  • संसार अनित्य है सदैव परिवर्तनशील है पृथ्वी गतिशील है और इसी कारण से संसार का अस्तित्व है।
सत्य मार्ग शिक्षा :
  • संसार में दुःख या संघरश है 
  • दुःख होने का कोई कारन अवश्य है 
  • दुःख का कारन हटाने पर ,दुःख दूर हो सकता है 
  • इस दुःख का निवारण अस्टांगिक मार्ग है
पंचशील : 

कोई व्यक्ति अच्छा आदमी बनना चाहता है तो वह अच्छाई का मापदंड स्वीकार करे। बुद्ध के अनुसार वह मानक पंचशील हो सकता है। 
  • किसी प्राणी की अकारण हिंसा न करना 
  • चोरी डकैती जैसे कार्य न करना 
  • अप्राकृतिक और अनैतिक कामाचार ना करना 
  • असत्य ,चुगली ,और कटु वचन न बोलना 
  • नशा ,आलसीपन ,हुड़दंग ,जुआ  से दूर रहना 


बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाए : 

  • सम्यक दृष्टि :  सुख और दुःख में सामान नजरिया रखना।  सुख दुःख आता जाता रहता है। 
  • सम्यक संकल्प : जीवन में वह काम करे जिससे दूसरों का भला होता हो। ऐसा संकल्प ले। 
  • सम्यक वचन : वाणी  सत्य और मधुर बोले  ,असत्य ,निंदा और अनावशयक बातो से बचे। 
  • सम्यक कर्मांत : किसी के प्रति मन ,वचन,कर्म से हिंसक व्यवहार न करे। .दुराचार और भोगविलास से दूर  रहना चाहिए। 
  • सम्यक आजीविका : गलत ,अनैतिक  या अधार्मिक तरीकों से आजीवका प्राप्त नहीं करनी चाहिए 
  • सम्यक व्यायाम : बुरी और अनैतिक आदतों को सच्चे मन से त्यागे। . 
  • सम्यक स्मृति : मन को जागरूक बनाए रखना और मन में अकुशल विचारों पर काबू पाना। 
  • सम्यक समाधि : मन में ठीक ठाक चिंतन करना ,कुशल कार्य करना और बुरे  विचारों का त्याग करना। 

पूर्णताओं का उपदेश :

बुद्ध ने एक मनुष्य को भौतिक  जीवन में निर्वाण प्राप्ति के लिए दस पारमिताओं की आवश्यकता बताई। 

  • अधिनिष्कर्मण    ;  सांसारिक भोगो का त्याग करना 
  • अधिष्ठान :   उद्देश्य का पहुंचने के लिए दृढ़ संकल्प करना 
  • दान : दूसरों की भलाई करना 
  • सत्यभाषी : सत्य बोलना ,मीठा बोलना
  • शांति :  घ्रणा का नाश करना ,दूसरों को माफ़ करना 
  • वीरता : वीर बनने का प्रयत्न करना 
  • प्रज्ञा : यथभूति स्तिथि का ज्ञान दर्शन करना 
  • सतयता : साथ देना और सत्य का पालन करना 
  • मैत्री : प्राणी और दुस्मनो के साथ भी  मैत्री भाव रखना 
  • उपेक्षा : चित्त की वह भावना जिसमे प्रिय और अप्रिय सामान दिखे 
बौद्धि सत्व क्या है : जो व्यक्ति सत्य मार्ग तो जानने और उस पर चलने के लिए अग्रसर रहता है उसे बौद्धि सत्व कहते है।  बुद्ध बनने के लिए एक बौद्धिसत्व को क्या करना पड़ता है ? उसके लिए उसको दस पारमिताओं और उसकी अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। 
  • चित्त के मैल को दूर करना 
  • काम चेतना से दूर रहना 
  • अनात्म और अनित्य के सिद्दांत को जान लेना 
  • ध्यान को पंचशील ,चार आर्य सत्य ,आठ सीलो पर केंद्रित करना 
  • सापेक्ष और निपेक्ष के बीच के सम्बन्ध को जानना 
  • वस्तुओं के विकाश ,उसके आचरण और १२ निदानों  को जान लेना  
  • काल बंधनो जैसे तृष्णा ,राग ,और द्वेष से मुक्त होना 
  • शांति और कुशल कर्म करना 
  • तमाम धर्मो और रीतियों को जीत लेना 
  • दिव्य और अदभुत दृष्टि प्राप्त करना 
बुद्ध ने कभी भी ईश्वरीय होने का दावा नहीं किया। और न मुक्ति दिलाने का आश्वाशन दिया।  मौर्य काल तक आते आते बौध्द धर्म भारत से निकल कर चीन ,जापान ,कोरिया ,मंगोलिया ,बर्मा ,थाईलैंड, और श्रीलंका आदि देशो में फैल चुका था।  आज बौद्ध धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म को मैंने वाले लोग है।  ८० वर्ष की आयु में कुशी नगर में मृत्यु को प्राप्त हुए।  बुद्ध इस दुनिया में ईसा पूर्व ५६३-४८३ के बीच रहे। जिसने सत्य मार्ग जाना वही सबसे सुखी इंसान है। बुद्धम सरणं गच्छामि। धम्मम सरणं गच्छामि।।संघम सरणं गच्छामि।   












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