जिंदगानी
चिन्ता की सेज़ पर ,
पिंघलतीं है जिंदगी।
अंगारों की मेज़ पर ,
जलती है जिंदगी।
दरिया में पानी की तरह ,
पथ्थरो से टकराती है जिंदगी।
रुक जाये तो बनकर तलाब ,
सड़ जाये है जिंदगी।
रात में टिमटिमाते तारो की तरह,
जलती बुझती है जिंदगी।
गिटार के तारो के तरह ,
सुर बेसुर बजती है जिंदगी
फूलो के बिस्तर पर ,
प्यार में मचलती है जिंदगी
सुख दुःख के साथ ,
आँसुओ में कटती है जिंदगी।
ये अजीब है जिंदगी,
पता नही कहा ले जाएगी जिंदगी
ठंडी गरम हवाओ में ,
छिपा है रह्स्य जिंदगी का
पता नहीं तूफ़ान के किसी छोर पर ,
एक दिन दफ़न होगी जिंदगी..
रुक जाएगी एक दिन जिंदगी ,,
पानी के बुलबले की तरह
उड़ जायेगी जिंदगी
शायद यही है जिंदगी।
रचित : कमल कुमार सिंह
0 टिप्पणियाँ