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मेरी कविता - जिंदगानी

 


जिंदगानी 


चिन्ता की सेज़ पर ,

पिंघलतीं है जिंदगी। 


अंगारों की मेज़ पर ,

जलती है जिंदगी। 


दरिया  में पानी की तरह ,

पथ्थरो से टकराती  है जिंदगी। 


रुक जाये तो बनकर तलाब ,

सड़ जाये है जिंदगी। 


रात में टिमटिमाते तारो की  तरह,

 जलती बुझती है  जिंदगी। 


गिटार के तारो के तरह ,

सुर बेसुर बजती है जिंदगी 


फूलो के बिस्तर पर ,

प्यार में मचलती है जिंदगी 


सुख दुःख के साथ ,

आँसुओ में कटती है जिंदगी। 


ये अजीब है   जिंदगी, 

 पता नही कहा ले जाएगी जिंदगी 


ठंडी गरम  हवाओ में ,

छिपा है   रह्स्य जिंदगी का 


पता नहीं तूफ़ान के किसी  छोर पर ,

एक दिन दफ़न होगी जिंदगी.. 


रुक जाएगी एक दिन जिंदगी ,,

पानी के बुलबले  की तरह 

उड़  जायेगी जिंदगी 

शायद यही है जिंदगी।


रचित : कमल कुमार सिंह


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