Visit Blue Host

Popular Bouddh Religious Destination of India /Nepal

 भारत में  मुख्य बौद्ध तीर्थ स्थल 

मुख्य रूप से भगवान बुद्ध के अनुयायियों के लिए चार  मुख्य तीर्थ हैं:-

(1) लुम्बिनी : जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ।
(2) बोधगया : जहाँ बुद्ध ने 'बोध' प्राप्त किया।
(3) सारनाथ : जहाँ से बुद्ध ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।
(4) कुशीनगर : जहाँ बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ।

(1) लुम्बिनी :



यह स्थान नेपाल की तराई में पूर्वोत्तर रेलवे की गोरखपुर-नौतनवाँ लाइन के नौतनवाँ स्टेशन से 20 मील और गोरखपुर-गोंडा लाइन के नौगढ़ स्टेशन से 10 मील दूर है।
नौगढ़ से यहाँ तक पक्का मार्ग भी बन गया है। गौतम बुद्ध का जन्म यहीं हुआ था। यहाँ के प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। केवल अशोक का एक स्तम्भ है, जिस पर खुदा है- 'भगवान्‌ बुद्ध का जन्म यहाँ हुआ था।' इस स्तम्भ के अतिरिक्त एक समाधि स्तूप भी है, जिसमें बुद्ध की एक मूर्ति है। नेपाल सरकार द्वारा निर्मित दो स्तूप और हैं। रुक्मनदेई का मंदिर दर्शनीय है। एक पुष्करिणी भी यहाँ है।

यहाँ बुद्ध ने 'बोध' प्राप्त किया था। भारत के बिहार राज्य में स्थित गया स्टेशन से यह स्थान 7 मील दूर है।

(3) सारनाथ :




बनारस छावनी स्टेशन से पाँच मील, बनारस-सिटी स्टेशन से तीन मील और सड़क मार्ग से सारनाथ चार मील पड़ता है। यह पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है और बनारस से यहाँ जाने के लिए सवारियाँ- ताँगा, रिक्शा आदि मिलते हैं। सारनाथ में बौद्ध-धर्मशाला है। यह बौद्ध-तीर्थभगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। यहीं से उन्होंने धर्मचक्र प्रवर्तन प्रारंभ किया था। सारनाथ की दर्शनीय वस्तुएँ हैं- अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तम्भ, भगवान बुद्ध का मंदिर (यही यहाँ का प्रधान मंदिर है), धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप, सारनाथ का वस्तु संग्रहालय, जैन मंदिर, मूलगंधकुटी और नवीन विहार।

सारनाथ बौद्ध धर्म का प्रधान केंद्र था किंतु मोहम्मद गोरी ने आक्रमण करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। वह यहाँ की स्वर्ण-मूर्तियाँ उठा ले गया और कलापूर्ण मूर्तियों को उसने तोड़ डाला। फलतः सारनाथ उजाड़ हो गया। केवल धमेख स्तूप टूटी-फूटी दशा में बचा रहा। यह स्थान चरागाह मात्र रह गया था।

सन्‌ 1905 ई. में पुरातत्व विभाग ने यहाँ खुदाई का काम प्रारंभ किया। इतिहास के विद्वानों तथा बौद्ध-धर्म के अनुयायियों का इधर ध्यान गया। तब से सारनाथ महत्व प्राप्त करने लगा। इसका जीर्णोद्धार हुआ, यहाँ वस्तु-संग्रहालय स्थापित हुआ, नवीन विहार निर्मित हुआ, भगवान बुद्ध का मंदिर और बौद्ध-धर्मशाला बनी। सारनाथ अब बराबर विस्तृत होता जा रहा है।

जैन ग्रंथों में इसे सिंहपुर कहा गया है। जैन धर्मावलंबी इसे अतिशय क्षेत्र मानते हैं। श्रेयांसनाथ के यहाँ गर्भ, जन्म और तप- ये तीन कल्याण हुए हैं। यहाँ श्रेयांसनाथजी की प्रतिमा भी है यहाँ के जैन मंदिरों में। इस मंदिर के सामने ही अशोक स्तम्भ है।

3- कुशीनगर :




गोरखपुर जिले में कसिया नामक स्थान ही प्राचीन कुशीनगर है। गोरखपुर से कसिया(कुशीनगर) 36 मील है। यहाँ तक गोरखपुर से पक्की सड़क गई है, जिस पर मोटर-बस चलती है। यहाँ बिड़लाजी की धर्मशाला है तथा भगवान बुद्ध का स्मारक है। यहाँ खुदाई से निकली मूर्तियों के अतिरिक्त माथाकुँवर का कोटा 'परिनिर्वाण स्तूप' तथा 'विहार स्तूप' दर्शनीय हैं। 80 वर्ष की अवस्था में तथागत बुद्ध ने दो शाल वृक्षों के मध्य यहाँ महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। यह प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ है।

अन्य तीर्थ स्थल :
तथागत के निर्वाण के पश्चात उनके शरीर के अवशेष (अस्थियाँ) आठ भागों में विभाजित हुए और उन पर आठ स्थानों में आठ स्तूप बनाए गए हैं। जिस घड़े में वे अस्थियाँ रखी थीं, उस घड़े पर एक स्तूप बना और एक स्तूप तथागत की चिता के अंगार (भस्म) को लेकर उसके ऊपर बना। इस प्रकार कुल दस स्तूप बने।

बौद्ध गया  महाबौधि टेम्पल जिस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ :




बौद्ध धर्म  से जुड़े लोग बौद्ध तीर्थ स्थलों को देखना चाहते है और सबसे महत्वपूर्ण स्थल है महाबोधि टेम्पल बौद्ध गया बिहार। बोधगया बिहार की राजधानी पटना के दक्षिण पूर्व में लगभग 100 किमी दूर पर  स्थित है। गया  शहर जिसे से सटा हुआ  बौद्ध गया एक छोटा सा शहर है। बोधगया गंगा की सहायक नदी फाल्गु नदी(Phalgu River) के किनारे पश्चिम दिशा में स्थित है। बौद्धों द्वारा बोधगया को दुनिया के सबसे पवित्र शहरों में से एक माना जाता है, क्योंकि यहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर को वर्ष 2002 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया था। यहां बौद्ध धर्म को मानने वालों के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी ध्यान(Meditation)करने और प्राचीन पर्यटन स्थलों को देखने के लिए आते हैं। यहाँ वर्ष भर भीड़ लगी रहती है लोग दर्शन के लिए आते  रहते है देश विदेश से।  

बौद्धगया का इतिहास एक नज़र में : 

 बिहार राज्य  में बोधगया एक प्राचीनतम शहर(Oldest City) है। लगभग 500 ईसा पूर्व बोधगया में ही गौतम बुद्ध को फाल्गु नदी के तट पर बोधि वृक्ष के नीचे कई वर्षो तक  कठिन तपस्या करने के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। ज्ञान प्राप्त होने के बाद वे बुद्ध के नाम से जाने गए। चूंकि भगवान बुद्ध को वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, इसलिए बुद्ध के अनुयायी बौद्ध गया स्थान पर आने  लगे। धीरे धीरे ये जगह बोधगया महाबोधि टेम्पल  के नाम से जाना लगा  और ये दिन बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है / 

माना जाता है कि बोधगया के महाबोधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की मूर्ति साक्षात उसी अवस्था में है जिस अवस्था में बैठकर उन्होंने तपस्या की थी और वह मूर्ति स्वयं भगवान बुद्ध द्वारा स्थापित की गई थी। बुद्ध की यह मूर्त्ति बौद्ध जगत  में सर्वाधिक प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त मूर्त्ति है। नालन्‍दा और विक्रमशिला के मंदिरों में भी इसी मूर्त्ति की प्रतिकृति को स्‍थापित किया गया है। इस शहर में अशोक महान ने कई स्मारकों का निर्माण कराया था।

13वीं शताब्दी तक बोधगया भगवान बुद्ध के कारण बहुत प्रसिद्ध रहा लेकिन अचानक हुए राजनीतिक उथल पुथल के कारण यह शहर कई शताब्दियों तक उपेक्षित रहा।शुरुआत में केवल आसपास के लोग ही यहां आते थे। लेकिन संचार प्रणाली और अन्य सुविधाओं के विकास के साथ तीर्थयात्रियों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इस पवित्र स्थान पर विभिन्न देशों के तीर्थयात्री अपने तरीके से पूजा करते हैं, पवित्र उपदेशों को पढ़ते हैं, मुख्य मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, पवित्र बोधि वृक्ष के नीचे चिंतन(Meditation) करने बैठते हैं  और  मोमबत्ती और घी के दीपक जला कर सकून  पाते है  / 


बोधगया शहर में क्या है देखने लायक : 

वैसे तो बोधगया का सबसे मुख्य आकर्षण महाबोधि मंदिर ही है। लेकिन इसके अलावा भी यहां कई रमणीय दार्शिनिक स्थल हैं जो सच में  देखने लायक हैं। कुछ स्थल है /


 १- बोधि वृक्ष 

ऐसा माना जाता है बोधगया में स्थित इसी वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को सच्चा   ज्ञान (Enlightenment) प्राप्त हुआ था। यह पेड़  ही मूल बोधि वृक्ष का ही एक भाग है, जिसे राजा अशोक की बेटी श्रीलंका लेकर गयी  थी।

 २-महाबोधि टेम्पल :



यह मंदिर बोधगया के मुख्य आकर्षणो में से एक है। इस मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था। मंदिर का निर्माण 7 वीं शताब्दी ईस्वी में मूल बोधि वृक्ष के चारों ओर किया गया है।

३-थाई मठ  :  



इस मठ की स्‍थापना थाईलैंड के राजपरिवार ने बौद्ध की स्‍थापना के 2500 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्‍य में किया था। इंडोसन-निप्‍पन-जापानी मंदिर (महाबोधि मंदिर परिसर से 11.5 किलोमीटर दक्षिण-पश्‍िचम में स्थित) का निर्माण 1972-73 में हुआ था। इस मंदिर का निर्माण लकड़ी के बने प्राचीन जापानी मंदिरों के आधार पर किया गया है।था।

४- रॉयल  भूटान मठ : 



यह मठ बोधगया के प्रसिद्ध मठों(Monastery) में से एक है। इस मठ का निर्माण भूटान के राजा द्वारा भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि के रूप में किया गया था।रॉयल भूटान मठ, बोध गया, बिहाररॉयल भूटान मठ क्षेत्र में सबसे शानदार मठों में से एक है, जिसे भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि के रूप में भूटान के राजा द्वारा बनाया गया था।रॉयल भूटान मठ, एक शांतिपूर्ण जगह है जहाँ आप बौद्ध धर्म सीख सकते हैं और अभ्यास कर सकते हैं। यह खूबसूरत मठ अपनी मिट्टी की नक्काशी के साथ निश्चित रूप से आपको प्रभावित करेगा, जिसमें भगवान बुद्ध के जीवन का चित्रण है, जिसे सजावटी स्थापत्य शैली से सजाया गया है।मठ के अंदर, भगवान बुद्ध की सात फीट ऊंची प्रतिमा है, जिसे बौद्ध प्रतीकों और शास्त्रों के साथ उकेरा गया है।इन शानदार नक्काशी को देखने के लिए दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी यहां आते हैं।

५-ग्रेट स्टेचू ऑफ़ लार्ड बुद्धा :



80 फीट की ऊँचाई पर खड़ी महान बुद्ध प्रतिमा(Statue), भगवान बुद्ध बोधगया से जुड़े धार्मिक और आध्यात्मिक स्मारकों में से एक है। देश की सबसे ऊंची बुद्ध मूर्तियों में से एक, संरचना 1989 में दलाई लामा द्वारा स्थापित की गई थी।

६-जापानी टेम्पल : 


इस मठ की स्‍थापना थाईलैंड के राजपरिवार ने बौद्ध की स्‍थापना के 2500 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्‍य में किया था। इंडोसन-निप्‍पन-जापानी मंदिर (महाबोधि मंदिर परिसर से 11.5 किलोमीटर दक्षिण-पश्‍िचम में स्थित) का निर्माण 1972-73 में हुआ था। इस मंदिर का निर्माण लकड़ी के बने प्राचीन जापानी मंदिरों के आधार पर किया गया है।

Archaeological Museum : 

आर्कियोलॉजिक म्यूजियम एक छोटा सा संग्रहालय(Museum) है जिसमें केवल तीन हाल हैं। इस संग्रहालय में हिंदू और बौद्ध धर्म की कई मूर्तियां और कलाकृतियां है और खुदाई में मिली कुछ अन्य चीजें भी रखी गई हैं। यह दर्शकों के देखने लायक(Worth Seeing) है।

इसके अलावा आप बोध गया में बराबर गुफा, नागार्जुनी गुफा,प्रेतशिला पहाड़ी,विष्णुपाद मंदिर,टर्गर मठ, फोवा सेंटर, गेंधेन फेलगेलिंग मठ, रूट इंस्टीट्यूट,बोधगया मल्टीमीडिया संग्रहालय, ताइवानी मंदिर, कर्मा मंदिर आदि देख सकते हैं।

चूंकि बौद्ध पूर्णिमा गर्मी के महीने में पड़ती है इसलिए बेहद गर्मी होने के कारण दुनिया के कोने कोने से पर्यटक बुद्ध जयंती मनाने के लिए यहां आते हैं। अगर आप मई के महीने में बोध गया आते हैं तो सूती कपड़े पहनकर आएं। अप्रैल से जून के बीच यहां गर्मी पड़ती है इसलिए पैदल चलकर बोधगया के सभी स्थल देखना संभव नहीं हो पाता है इसलिए इस महीने में कम पर्यटक आते हैं। मार्च से अक्टूबर के बीच का महीना बोधगया आने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। इस दौरान पर्यटक बिना अधिक गर्मी या बारिश के बेहद आराम से बोध गया घूम सकते हैं।

 बोधगया पहुंचने के लिए यातायात के मुख्य साधन क्या हैं? :

बोधगया का निकटतम हवाई अड्डा गया है जो बोधगया शहर से लगभग 17 किलोमीटर दूर है। हालांकि यहां कम ही फ्लाइटें आती हैं लेकिन यह कोलकाता से हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह से कनेक्ट है। थाई एयरवेज की गया के लिए नियमित उड़ानें हैं जबकि बैंकॉक से ड्रुक एयर हफ्ते में एक दिन गया के लिए उड़ान भरती है।

इसके अलावा पटना एयरपोर्ट कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, रांची, लखनऊ सहित भारत के अन्य शहरों से इंडियन एयरलाइंस और अन्य घरेलू वाहकों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पटना से बोधगया 135 किमी दूर है। एयरपोर्ट के बाहर से आप टैक्सी बुक करके बोधगया शहर पहुंच सकते हैं।

बोधगया का निकटतम रेलवे स्टेशन गया जंक्शन है जो यहां से 13 किमी दूर है। इस स्टेशन से कई राज्यों से ट्रेनें गुजरती हैं। आप गया रेलवे स्टेशन के बाहर से टैक्सी लेकर बोधगया पहुंच सकते हैं। गया स्टेशन पर सियालदह नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस, हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस, हावड़ा नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस और कोलकाता मेल जैसी ट्रेनें पहुंचती हैं। पटना जंक्शन से बोधगया 110 किमी दूर है। पटना पहुंचने के लिए बंगलौर, दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई और पुणे से कई ट्रेनें हैं।

गया से एक मुख्य सड़क बोधगया शहर को जोड़तीहै। पटना से बोधगया के लिए  बिहार राज्य पर्यटन निगम की बसें प्रतिदिन दो बार चलती हैं।इसके अलावा डीलक्स बसें भी चलती हैं। पटना के अलावा, नालंदा, राजगीर, वाराणसी और काठमांडू से भी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। अब लक्जरी वातानुकूलित वोल्वो बसें भी शुरू हो गई हैं  जो आसपास के शहरों से बोधगया को जाती हैं।

बोधगया में ठहरने के लिए होटल और गेस्ट हाउस की कमी नहीं है। लेकिन पीक सीजन में पहले से कमरा बुक कराना ज्यादा फायदेमंद होता है। यहां एसी और नॉन एसी दोनों तरह के होटल और गेस्टहाउस हैं। महाबोधि मंदिर से पार्क के सामने बहुत से होटल हैं जहां पर्यटकों के लिए ठहरने और भोजन की बेहतर सुविधा उपलब्ध है। अगर आप अकेले रुकना चाहते हैं तो यहां आपको 200 रुपये में भी कमरा मिल सकता है।

रुकने की  सुविधा :

बोधगया में आप भूटान मोनेस्ट्री, बर्मीज विहार,कुंदन बाजार गेस्ट हाउस, महाबोधि सोसायटी, रैन्बो गेस्टहाउस, साक्य मोनेस्ट्री गेस्टहाउस, राहुल गेस्टहाउस, सिद्धार्थ विहार टूरिस्ट कॉम्पलेक्स, होटल सुजाता आदि होटलों में रुक सकते हैं। बोधगया में आपको कम कीमत के भी होटल आसानी से मिल सकते हैं। बस कुछ  सर्च करे  जैसे मेक माय ट्रिप , बुकिंग डॉट कॉम ,होटल्स डॉट कॉम  इत्यादि पर। ट्रैन  टिकट बुक करने  के लिए  आई आर सी टी सी  और ऑनलाइन टिकट  बुक करे आसान है।  



 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ